ईजा ( माँ) एक अद्वितीय संबोधन , जिसमे समाया है पूराब्रह्मांड
July 14, 2024
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पर्यटन
उत्तराखंड: ईजा शब्द दुनिया के शब्दकोश का अकेला ऐसा शब्द है जिसमें पूरा ब्रह्माण्ड समाया हुआ है। 'ई' का अर्थ ईश्वर और आत्मजा से है, जबकि 'जा' का अर्थ जन्म देने वाली जननी से है, अर्थात ईश्वर भगवान को जन्म देने वाली जननी। ईजा (मां)।
ईजा शब्द का विकास संस्कृत के आर्य शब्द से हुआ है, जो कि स्वयं आर्यों की गौरवपूर्ण सांस्कृतिक परम्परा का अवशेष है। यद्यपि मां शब्द में पर्याप्त स्नेह और आदर का भाव है, किन्तु ईजा (आर्या) शब्द से जननी के प्रति बहुत ही आदर और सम्मान का भाव प्रकट होता है। मराठी का 'आई' शब्द भी इसी कोटि का है।
हमारे यहां ईजा की छोटी बहन को कैंजा अर्थात कनिष्ठ ईजा (छोटी ईजा) और उनके पति को कांस बौज्यू कहा जाता है। ईजा की बड़ी बहन को जेड़जा अर्थात ज्येष्ठ ईजा (बड़ी ईजा) और उनके पति को जेड़ बौज्यू कहा जाता है। ईजा की सबसे बड़ी बहन को ठुली ईजा अर्थात बड़ी ईजा और उनके पति को ठुल बौज्यू कहा जाता है।
मैत शब्द मातृसत्ता से जुड़ा हुआ नाम है। जिस प्रकार अन्य स्थानों में मैत को पीहर, ननिहाल कहते हैं, तो हमारे यहां इसे मैत अर्थात मकोट/मालाकोट/मामा का घर कहा जाता है। मैत और मालाकोट शब्द विशिष्ट प्रकार की सांस्कृतिक परम्परा का बोध कराते हैं। आधुनिक भारत के लगभग सभी लोगों में पूर्णतः पितृसत्तात्मक व्यवस्था का अनुकरण किया जाता है। मेरा मानना है कि कभी यहां मातृसत्तात्मक समाज व्यवस्था रही होगी। क्योंकि जहां अन्य क्षेत्रों में विवाहिता पुत्री अपने पितृ गृह के लिए पीहर शब्द का प्रयोग करती है, वहीं हमारे यहां मैत शब्द का प्रयोग होता है। स्पष्ट है कि पितृ गृह से व्युत्पन्न पीहर शब्द पितृसत्तात्मक का द्योतक है, वहीं मातृसत्तात्मक शब्द से व्युत्पन्न मैत शब्द मातृसत्तात्मक परम्परा का द्योतक है। मेरे इस अनुमान की पुष्टि मालाकोट शब्द से होती है। मातृसत्तात्मक समाजों में बहन के बच्चों पर मामा का विशेष अधिकार होता है। इसके लिए नाना की अपेक्षा मामा का महत्व अधिक होने के कारण इसे ननसाल/नैहर/ननिहाल न कहकर मालाकोट/मकोट/माकोट भी या मामा का घर कहा जाता है।
ईजा (मां) तो ईजा ही होती है, जननी तो जननी होती है चाहे हम उसे किसी भी सम्बोधन से सम्बोधित करें। ईजा भले ही ज्यादा पढ़ी-लिखी न हो पर हमारी पीड़ा को पढ़ लेती है। समय बदला तो रिश्तों के सम्बोधनों के शब्दों के अर्थ बदल गये और न जाने कहां खो गये। गांव भी अब गांव नहीं रहे। उम्र हो गई है अब साठ (60) से ऊपर, किन्तु अभी भी उम्र ऐसी नहीं हुई कि (ईजा) और उसके शब्दों को समझना व जानना आ सके। बोलना आता था क्योंकि सब बोलते थे। बोलना और समझना दोनों में बड़ा फर्क होता है। ईजा की संगत में रहकर ये थोड़ा-थोड़ा अब कहीं जाकर समझ में आता है। आज जब शब्द समझ में आये तो जुबान बूढ़ी हो गई। बहुत देवत्व है इस ईजा शब्द में। सबकी ईजा (मां) जननी, धात्री को शत-शत प्रणाम, पैलाग, नमन।
लेखक: बृजमोहन जोशी
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