- "जितने कंकर, उतने शंकर"** आज है सावन का चौथा सोमवार, पार्थिव पूजा का विशेष महत्व
August 12, 2024
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जनहित
उत्तराखंड: **संस्कृति अंक: श्रावण माह के सन्दर्भ में - "जितने कंकर, उतने शंकर"**
**धार्मिक अनुष्ठान: शिवार्चन - पार्थिव पूजन**
श्रावण माह, जिसे हमारे यहां "सौण म्हैण" कहा जाता है, धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। उत्तराखंड में प्रचलित प्रसिद्ध लोकोक्ति "जितने कंकर, उतने शंकर" इस बात का प्रतीक है कि यहां हर कण में भगवान शिव का वास है। उत्तराखंड, जिसे देवभूमि के नाम से जाना जाता है, भगवान शिव का ससुराल और मां भगवती पार्वती का मायका भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में श्रावण माह के दौरान भगवान शिव की पूजा, विशेष रूप से पार्थिव पूजन और शिवार्चन का विशेष महत्व है।
श्रावण मास को भगवान शिव अत्यंत प्रिय हैं और इस मास में शिव के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है। पार्थिव पूजन के तहत भक्तजन मिट्टी, गोबर, चावल के आटे और अन्य सामग्री से पार्थिव लिंगों का निर्माण करते हैं और उनकी विधिवत पूजा करते हैं। इस पूजा का उद्देश्य विभिन्न प्रकार की मनोकामनाओं की पूर्ति करना है, जैसे संतान प्राप्ति, शत्रु नाश, और घर की सुख-शांति।
श्रावण माह की काल चतुर्दशी का दिन पार्थिव पूजन के लिए विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है। जो लोग श्रावण माह में पार्थिव पूजन नहीं कर पाते, वे वैशाख या कार्तिक मास में भी यह पूजा कर सकते हैं। परंपरा के अनुसार, इस पूजन को एक बार आरंभ करने के बाद इसे हर वर्ष करना चाहिए। श्रावण माह में, महिलाएं सोमवार का व्रत करती हैं और संतान प्राप्ति के लिए विशेष रूप से शिव की उपासना करती हैं।
पार्थिव पूजन के लिए, भक्तजन पहले से ही तैयारी करते हैं। शिवलिंगों की संख्या 108 से लेकर हजारों, यहां तक कि लाखों तक हो सकती है। पूजन के उपरांत, पार्थिव लिंगों का किसी जलाशय में विसर्जन किया जाता है।
श्रावण माह के दौरान, उत्तराखंड के ग्रामीण अंचलों में गांव की खुशहाली और सुख-समृद्धि के लिए लोग जागेश्वर जैसी धार्मिक स्थलों की यात्रा करते हैं। इस अवसर पर आयोजित मेले और धार्मिक अनुष्ठान देवभूमि की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं।
व्रजमोहन जोशी
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