हिमालय : धरोहर, प्रेरणा और संरक्षण का प्रतीक: डॉ. ललित तिवारी
September 09, 2025
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जनहित
उत्तराखंड: विशेष लेख
डॉ. ललित तिवारी
हिमालय : धरोहर, प्रेरणा और संरक्षण का प्रतीक
“खड़ा हिमालय बता रहा है” — सोहनलाल द्विवेदी की यह प्रसिद्ध कविता हिमालय के दृढ़ निश्चय, अडिगता और प्रेरणादायक स्वरूप को उजागर करती है। कवि हमें यह संदेश देते हैं कि जीवन के संघर्षों में विचलित हुए बिना, हिमालय की भांति अविचल रहकर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहना चाहिए।
हिमालय केवल पर्वत नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति और पहचान का जीवंत प्रतीक है। इसे हिमवान, हिमाद्रि और पर्वतराज — अर्थात पहाड़ों का स्वामी — भी कहा जाता है। यह लगभग 2400 किलोमीटर लंबा, 110 चोटियों वाला और 250 मिलियन वर्ष पुराना है।
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“हिम” और “आलय” का संगम
‘हिमालय’ शब्द संस्कृत के ‘हिम’ (बर्फ) और ‘आलय’ (निवास) से बना है, जिसका अर्थ है—“बर्फ का घर”। यह पर्वतमाला भारत को उत्तर में सुरक्षित करती है और भारतीय उपमहाद्वीप को तिब्बत के पठार से अलग करती है।
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विश्व की सबसे ऊंची पर्वत श्रृंखला
हिमालय में दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटियां स्थित हैं।
• माउंट एवरेस्ट (8848 मीटर)
• के2, कंचनजंगा, ल्होत्से, मकालू, चो ओयू, धौलागिरी, मनास्लु, नंगा पर्वत, अन्नपूर्णा और नंदा देवी इसकी प्रमुख चोटियां हैं।
यहाँ लगभग 15,000 हिमनद हैं, जो एशिया की नदियों का मुख्य स्रोत हैं।
जैव विविधता का खजाना
हिमालय विश्व के 36 जैव विविधता हॉटस्पॉट्स में से एक है।
• यहाँ 10,000 से अधिक पौधों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
• इनमें से लगभग 31600 स्थानिक (endemic) हैं।
• हिम तेंदुआ, लाल पांडा और हिमालयी ताहर जैसे दुर्लभ जीव-जंतु भी यहीं पाए जाते हैं।
हिमालय आज गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है—
• जलवायु परिवर्तन और हिमनदों का पिघलना
• भूस्खलन और मृदा अपरदन
• अनियंत्रित पर्यटन और वन संसाधनों का क्षरण
ये समस्याएँ केवल हिमालय ही नहीं, बल्कि मानव सभ्यता, जल संसाधनों और स्थानीय समुदायों के लिए भी खतरा बन चुकी हैं।
संरक्षण की जिम्मेदारी
हिमालय हमारी प्राकृतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर है। इसका संरक्षण केवल संस्थाओं का नहीं, बल्कि हर व्यक्ति का कर्तव्य है। हमें सतत विकास की दिशा में आगे बढ़ते हुए हिमालय की रक्षा करनी होगी ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी इसकी भव्यता, प्रेरणा और जीवनदायिनी शक्ति का अनुभव कर सकें।
हिमालय न केवल एक पर्वत श्रृंखला है, बल्कि यह हमारी आस्था, ऊर्जा और जीवन का स्रोत है। आज आवश्यकता है कि हम सब मिलकर इसके संरक्षण में सक्रिय भूमिका निभाएं और इस धरोहर को सुरक्षित रखें।
लेखक : डॉ. ललित तिवारी
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