33 वर्षों से रावण का अभिनय कर रहे हैं कैलाश जोशी, दर्शकों की तालियों से गूंजता है सभा भवन
September 30, 2025
•
276 views
सामान्य
उत्तराखंड: 33 वर्षों से रावण बने कैलाश जोशी — श्री राम सेवक सभा की रामलीला का जीवंत मर्म
अभिनय, भक्ति और मंचीय भव्यता का संगम; कैलाश के संवाद और भजनों पर दर्शकों की तालियाँ थमती ही नहीं
नैनीताल, 30 सितंबर — श्री राम सेवक सभा की रामलीला न केवल लोकनाट्य का पर्व है बल्कि शहर की सांस्कृतिक पहचान भी बनी हुई है। इस भव्य मंचन का सबसे दिलचस्प आकर्षण पिछले तीन दशकों से वह शख्स है जो रावण के रूप में आकर दर्शकों के हृदय पर गहरी छाप छोड़ देता है — कैलाश जोशी। 33 वर्षों की अनवरत भूमिकानुभूति ने उन्हें मात्र एक अभिनेता नहीं, बल्कि स्थानीय रंगमंच का एक जीता-जागता प्रतीक बना दिया है।
अविस्मरणीय प्रवेश, गूंजती तालियाँ
जैसे ही कैलाश जोशी रावण के रूप में मंच पर आते हैं, सभा भवन तालियों, जयकारों और कभी-कभी आश्चर्यजनक शांति के बीच गूंज उठता है। उनकी लंबी कद-काठी, गंभीर और गुंथे हुए स्वर में बोलने की कला, और संवादों में वह उदात्त रुख — ये सभी मिलकर रावण की विशाल उपस्थिति को यथार्थ बनाते हैं। दर्शक अक्सर उनके किसी एक संवाद पर ही तालियों से अभिवादन कर देते हैं — उदाहरण के तौर पर उनका प्रसिद्ध संवाद “मंदोदरी! रावण आज भी अपराजेय है” सुनते ही लोगों में उत्साह की लहर दौड़ जाती है।
अभिनय के साथ भक्ति — एक दुर्लभ समन्वय
कैलाश केवल संवाद बोलते ही नहीं; उनकी वाणी से भजन भी फूट पड़ते हैं। मंच पर कभी-कभी वे अचानक भक्ति-राग में उतरकर ऐसा मंत्रमुग्ध कर देने वाला भजन गाते हैं — “राम नाम रस पीजिए, मन हरषित होई” — कि पूरे प्रेक्षागृह में भक्ति का वातावरण फैल जाता है। इस अभिनव संयोजन ने उन्हें केवल नाटककार नहीं, बल्कि आध्यात्मिक अनुभव देने वाले कलाकार के रूप में भी प्रतिष्ठित कर दिया है।
तैयारी, अनुशासन और अनुभव
33 वर्ष का यह सफर केवल स्वाभाविक प्रतिभा का ही परिणाम नहीं है — इसके पीछे कठिन अभ्यास, शारीरिक दृढ़ता और दृढ़ निश्चय है। मंच पर उनके प्राणपूर्ण अभिनय के पीछे रोज़ाना की प्रैक्टिस, संवादों का स्वरूप बदलने पर तैयारी, और भक्ति गीतों का अभ्यास निहित है। वेशभूषा, मेकअप और मंच सज्जा में भी उनकी गहरी रुचि रहती है — वे प्रत्येक प्रदर्शनी को सूक्ष्मता से देखते हुए अपनी प्रस्तुति को हर साल थोड़ा और परिपक्व बनाते हैं।
स्टेज क्राफ्ट और टीम का योगदान
श्री राम सेवक सभा की रामलीला में कैलाश अकेले नहीं — उनके साथ पीठिका, संगीतकार, मेकअप आर्टिस्ट और मंच प्रबंधक मिलकर समग्र अनुभव बनाते हैं। तेज़ रोशनी, गूंजता बैकग्राउंड म्यूज़िक, परिधानों की जटिल कढ़ाई और सेट की विशालता — सब मिलकर रावण के प्रवेश और संवादों को प्रभावशाली बनाते हैं। तकनीकी समन्वय इतना सटीक होता है कि हर भाव, हर लय दर्शक तक बिना किसी रुकावट के पहुंचती है।
दर्शकों की प्रतिक्रिया
रामलीला देखने आने वाले परिवार, बुज़ुर्ग भक्त और युवा—सबके चेहरों पर वही विस्मय और आनंद के भाव दिखाई देते हैं। एक दर्शक ने कहा, “उनकी आवाज़ सुनते ही ऐसा लगता है कि महाकाव्य जीवंत हो उठा है — अभिनय और भक्ति दोनों का अद्भुत मिश्रण।” अनेक लोग तो सालों से हर वर्ष यही भूमिका देखने आते हैं, यह परंपरा परिवार से परिवार तक चलती आ रही है।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
कैलाश जोशी का रावण सिर्फ नाटकीय किरदार नहीं; यह स्थानीय स्मृति, रक्षा की भावना और समुदाय के साझा समारोह का एक निशान है। उनकी लगातार सेवा ने युवा कलाकारों के लिए प्रेरणा का काम किया है और रामलीला जैसी परंपराओं को जीवित रखने में मदद की है। यह मंच मात्र मनोरंजन नहीं, सामाजिक एकता और सांस्कृतिक शिक्षण का भी माध्यम बन चुका है।
निष्कर्ष
श्री राम सेवक सभा की रामलीला में कैलाश जोशी का रावण न केवल दर्शकों की तालियों का पात्र है, बल्कि एक ऐसी परंपरा का संरक्षणकर्ता भी है जो पीढ़ी दर पीढ़ी गुजरती आ रही है। उनकी अदायगी, भक्ति-गायक प्रवृत्ति और मंच पर शाश्वत उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्व दिया है।
Comments
0 voicesLog in or sign up to comment
No comments yet. Be the first to share your thoughts!