नंदा देवी: उत्तराखंड की लोक देवी और उनकी धार्मिक महत्ता, महोत्सव आज से शुरू

by Ganesh_Kandpal

Sept. 8, 2024, 8:59 a.m. [ 329 | 0 | 0 ]
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गणेश चंद्र कांडपाल : नैनीताल

नंदा देवी उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र की प्रमुख देवी मानी जाती हैं, जिनकी पूजा हिमालय क्षेत्र में आदिकाल से होती आ रही है। नंदा देवी न केवल लोक आस्था का केंद्र हैं, बल्कि उनके प्रति सम्मान का भाव धार्मिक ग्रंथों, उपनिषदों, और पुराणों में भी मिलता है। देवी नंदा का नाम विशेष रूप से "रूप मंडन" में उल्लेखित है, जिसमें देवी पार्वती के छह रूपों में से एक के रूप में उन्हें दर्शाया गया है। उन्हें नवदुर्गाओं में से एक और भगवती की छह अंगभूता देवियों में भी माना गया है। भविष्य पुराण में जिन दुर्गा के स्वरूपों का उल्लेख मिलता है, उनमें नंदा देवी का नाम प्रमुख है। यह बताता है कि नंदा देवी केवल लोक मान्यताओं तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि शास्त्रीय धर्मग्रंथों में भी उनकी पूजा का विशेष स्थान है।

नैनीताल का नंदा देवी महोत्सव

नैनीताल में हर साल नंदा देवी महोत्सव का आयोजन किया जाता है, जो कुमाऊं की संस्कृति से गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। इस महोत्सव का आयोजन नैनीताल की श्री राम सेवक सभा द्वारा कई वर्षों से किया जा रहा है। महोत्सव के दौरान नयना देवी मंदिर में देवी नंदा और सुनंदा की मूर्तियों की स्थापना की जाती है, जिन्हें खासतौर पर केले के पेड़ से बनाया जाता है। इस परंपरा के पीछे धार्मिक मान्यता यह है कि केले के पेड़ में देवी नंदा और सुनंदा का वास होता है। पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार, जब मां नंदा और सुनंदा पर भैंसे का आक्रमण हुआ था, तो केले के पेड़ ने उनकी रक्षा की थी। तभी से केले के पेड़ का धार्मिक महत्व बढ़ गया और मां की मूर्तियों का निर्माण इसी पेड़ से किया जाता है।

### मूर्ति निर्माण की परंपरा

नंदा देवी महोत्सव के दौरान केले के पेड़ से मां नंदा और सुनंदा की मूर्तियां पारंपरिक लोक कलाकारों द्वारा बनाई जाती हैं। केले के पेड़ का चयन विशेष विधि-विधान से किया जाता है। पेड़ का चयन स्वच्छ पर्यावरण में किया जाता है, और इसमें फलों का न होना आवश्यक होता है। शोभा यात्रा के दौरान इस पेड़ को पूरे नगर में घुमाया जाता है, जिसके बाद इस पेड़ से मां की मूर्तियों का निर्माण किया जाता है। मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के बाद उन्हें भक्तों के दर्शन के लिए मंदिर में स्थापित किया जाता है।

नंदा देवी का मूल धाम चमोली जिले के कुरुड़ गांव में स्थित है। यह स्थान धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है, जहां से देवी नंदा की पूजा की परंपरा का उद्भव हुआ। कालांतर में गढ़वाल और कुमाऊं के अन्य क्षेत्रों में भी नंदा देवी के मंदिर स्थापित किए गए। गढ़वाल में सिमली, तल्ली धूरी, चांदपुर, और तल्ली दसोली जैसे स्थानों में नंदा देवी की विशेष पूजा होती है। कुमाऊं में अल्मोड़ा, रणचूला, डंगोली, बदियाकोट, और सरमूल जैसे स्थानों में नंदा देवी के मंदिर हैं, जिनमें अल्मोड़ा का नंदा देवी मंदिर सबसे प्रमुख है। यह मंदिर ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यहाँ बधाण गढ़ी से नंदा देवी की मूर्ति लाकर स्थापित की गई थी।

### नंदा देवी के सम्मान में उत्सव और मेले

उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्रों में नंदा देवी के सम्मान में विशेष मेलों और यात्रा उत्सवों का आयोजन किया जाता है। गढ़वाल में **राज जात यात्रा** नंदा देवी के प्रति समर्पित एक प्रमुख धार्मिक यात्रा है, जो हर 12 साल में होती है। यह यात्रा कई किलोमीटर लंबी होती है और इसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं। कुमाऊं में अल्मोड़ा, नैनीताल, और कुरुड़ में नंदाष्टमी के अवसर पर आयोजित मेलों की विशेष धूम होती है। अल्मोड़ा के नंदा देवी मेले की रौनक भाद्र मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को देखने लायक होती है। यह मेला अपनी ऐतिहासिकता और सांस्कृतिक धरोहर के कारण विशेष महत्व रखता है


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