by Ganesh_Kandpal
Sept. 6, 2025, 8:36 p.m.
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विशेष रिपोर्ट – मां नंदा-सुंदा महोत्सव : आस्था, परंपरा और भावनाओं का अनूठा संगम
नैनीताल। सरोवर नगरी मंगलवार को श्रद्धा और भावनाओं के सागर में डूबी रही। नंदा देवी महोत्सव के समापन अवसर पर मां नंदा-सुंदा की भव्य शोभायात्रा और प्रतिमाओं के विसर्जन ने नगर को भक्तिमय बना दिया। विदाई के क्षणों में जहां श्रद्धालुओं की आंखें नम थीं, वहीं “जय मां नंदा” के जयकारों से वातावरण गूंज रहा था।
ऐतिहासिक परंपरा
१२३ वर्षों से चला आ रहा नंदा देवी महोत्सव केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि कुमाऊं की सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत है। माता नंदा को कुमाऊं की इष्ट देवी माना जाता है। मान्यता है कि माता हर वर्ष अपने मायके आती हैं और पांच दिनों तक नगर में विराजमान रहती हैं। अंतिम दिन शोभायात्रा और विसर्जन उनकी विदाई का प्रतीक होता है।
शोभायात्रा का भव्य आयोजन
मंगलवार दोपहर 12 बजे नयना देवी मंदिर से मां नंदा का डोला नगर भ्रमण के लिए निकला। मल्लीताल से तालीताल तक शोभायात्रा में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी। घरों की छतों और बालकनियों से फूलों व अक्षतों की वर्षा हुई, महिलाएं मंगलगीत गाती रहीं।
वापसी में डोला नैनीताल क्लब, रामसेवक सभा और बड़े बाजार मार्ग से होता हुआ ठंडी सड़क पहुंचा, जहां परंपरा के अनुसार मां नंदा-सुंदा की प्रतिमाओं का विधिवत विसर्जन किया गया।
भावनाओं का चरम
विदाई का क्षण अत्यंत भावुक रहा। भक्त प्रतिमाओं के सम्मुख नतमस्तक होकर आशीर्वाद लेते रहे। जगह-जगह “जय मां नंदा” और “जय मां सुंदा” के स्वर गूंजते रहे। श्रद्धालुओं का कहना था कि यह विदाई नहीं, बल्कि अगले वर्ष के पुनः आगमन का वचन है।
इस बार की खास झलकियां
• नगर की सड़कों और मंदिर परिसर को आकर्षक झांकियों व सजावट से सजाया गया।
• रामसेवक सभा में सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने देर रात तक भक्तों को बांधे रखा।
• विशाल भंडारे में हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया।
• बारिश थमने के बाद स्थानीय व्यापारियों की दुकानों पर जमकर खरीदारी हुई।
• सफाई व्यवस्था पर विशेष ध्यान – इस बार मेले की साफ-सफाई को लेकर नगर पालिका ने विशेष इंतजाम किए। स्वच्छता व्यवस्था की डीएम और कमिश्नर ने भी सराहना की।
• निजी निगरानी – नगर पालिका अध्यक्ष ने स्वयं व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया और रामसेवक सभा के भव्य आयोजन की प्रशंसा की।
नंदा देवी महोत्सव का यह समापन जहां आस्था और भक्ति का उत्कर्ष था, वहीं कुमाऊं की परंपराओं, सामाजिक एकता और प्रशासनिक सजगता का भी अद्भुत उदाहरण रहा। यह आयोजन आने वाले पूरे वर्ष श्रद्धालुओं के मन में भक्ति और ऊर्जा का संचार करता रहेगा।
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