by Ganesh_Kandpal
Dec. 5, 2024, 7:58 a.m.
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37 वर्षीय खड़क सिंह चौहान: नाव मालिक से गायक बनने की प्रेरक कहानी
कुमाऊँनी भाषा के प्रचार और शौक को पूरा करने का अद्भुत सफर
नैनीताल। जीवन में शौक और इच्छाशक्ति इंसान को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकते हैं। नैनीताल के खड़क सिंह चौहान इसकी मिसाल हैं। मूल रूप से अल्मोड़ा जिले के भनौली तहसील के राजा गांव निवासी स्वर्गीय धन सिंह चौहान के पुत्र खड़क सिंह ने अपने जीवन को संघर्ष और सफलता की अद्भुत कहानी में बदल दिया है।
शुरुआती जीवन और संघर्ष:
खड़क सिंह की प्रारंभिक शिक्षा जीआईसी भेटा बडोली में हुई। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने लकड़ी के काम में हाथ आजमाया। बेहतर जीवन की तलाश उन्हें हरियाणा ले गई, जहां उन्होंने 20 वर्षों तक होटल में काम किया। गर्मियों के दौरान वह नैनीताल लौटकर नाव बनाने का काम करते रहे, जो आज भी जारी है।
गायन का जुनून:
बचपन से ही खड़क सिंह को गाने लिखने और गाने का शौक था। हालांकि, इसे पूरा करने का मौका उन्हें इस साल अक्टूबर में मिला। उन्होंने अपना पहला कुमाऊँनी गीत “उड़ कबूतर जा जा मेर चिट्ठी ली जा दे, आली तो उ बुला लाए, न आली मेरी चिट्ठी दी आये” लिखा और भुवन कुमार की मदद से हल्द्वानी के नंदा स्टूडियो में रिकॉर्ड किया।
भाषा के प्रति समर्पण:
खड़क सिंह का मानना है कि उनकी गायकी केवल शौक नहीं बल्कि कुमाऊँनी भाषा को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का एक प्रयास है।
परिवार:
खड़क सिंह की पत्नी गृहणी हैं और उनकी दो बेटियां हैं—17 वर्षीय पूजा चौहान और 13 वर्षीय पिंकी चौहान।
संदेश:
खड़क सिंह चौहान की कहानी यह सिखाती है कि इच्छाशक्ति और लगन से कोई भी शौक को वास्तविकता में बदला जा सकता है। उनका प्रयास कुमाऊँनी भाषा और संस्कृति के संरक्षण और प्रचार के लिए प्रेरणादायक है।
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