पारंपरिक कुमाऊंनी पिछौड़ा: मॉडर्न वेडिंग्स में नया फैशन ट्रेंड, पुराने समय से आज पिछौड़ा में बदलाव

by Ganesh_Kandpal

Jan. 29, 2025, 8:04 p.m. [ 627 | 0 | 0 ]
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पारंपरिक कुमाऊंनी पिछौड़ा: मॉडर्न वेडिंग्स में नया फैशन ट्रेंड

उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत केवल इसकी प्राकृतिक सुंदरता तक सीमित नहीं है, बल्कि यहां की पारंपरिक वेशभूषा भी इसकी सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन्हीं में से एक प्रमुख परिधान है कुमाऊंनी पिछौड़ा, जिसे शुभ कार्यों, विवाह समारोहों और धार्मिक अनुष्ठानों में कुमाऊंनी महिलाएं पहनती हैं। यह न केवल एक पारंपरिक वस्त्र है, बल्कि इसके पीछे गहरी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक मान्यताएँ भी जुड़ी हुई हैं।

आज के दौर में, जब फैशन लगातार बदल रहा है, पिछौड़ा ने भी खुद को नए ट्रेंड्स के अनुरूप ढाल लिया है। पहले यह केवल कुमाऊं के पारंपरिक आयोजनों तक सीमित था, लेकिन अब इसे मॉडर्न डिजाइनों में तैयार किया जा रहा है, जिससे यह उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देशभर की शादियों में एक नया फैशन स्टेटमेंट बन गया है।

शादियों में ट्रेंडिंग: कुमाऊं का पारंपरिक पिछौड़ा, बना मॉडर्न वेडिंग का नया फैशन स्टेटमेंट

नैनीताल - देवभूमि उत्तराखंड अपनी अद्भुत छटा के साथ ही यहां के पारंपरिक पहनावे के लिए भी जाना जाता है. उत्तराखंड एक कुमाऊं मंडल में मुख्य रूप से किसी भी शुभ कार्य में महिलाएं कुमाऊं का खास पिछौड़ा पहनती हैं, कुमाऊं में पिछौड़ा मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा पहना जाता है. कुमाऊं में पिछौड़ा को "रंगवाई पिछौड़ा" भी कहा जाता है, क्योंकि इसे परंपरागत रूप से पीले और लाल रंग के सुंदर संयोजन में तैयार किया जाता है. पीला रंग शुभता और पवित्रता का प्रतीक है, जबकि लाल रंग ऊर्जा और उत्साह का प्रतीक माना जाता है. इस पर हिंदू धर्म के धार्मिक प्रतीक, जैसे स्वस्तिक, बेल-बूटे, सूरज और चंद्रमा की आकृतियां छापी जाती हैं, जो इसे और भी अधिक आकर्षक बनाते हैं. पुराने समय में हाथों से पिछौड़ा तैयार किया जाता था. लेकिन अब मशीनों से कई तरह के डिजाइनों में पिछौड़ा बाजार में उपलब्ध है, और लगभग पूरे उत्तराखंड समेत तमाम बड़े महानगरों की शादियों में भी फैशन का नया ट्रेंड बनता जा रहा है. आधुनिक समय में भी, पिछौड़ा ने अपनी विशेषता और महत्व को बनाए रखा है. हालांकि अब इसे विभिन्न प्रकार के फैशन और डिजाइनों में तैयार किया जा रहा है, लेकिन इसकी पारंपरिक छवि और रंग संयोजन को आज भी बरकरार रखा गया है.

उत्तराखंड के नैनीताल, मल्लीताल बाजार में स्थित सरस्वती मैचिंग सेंटर के मालिक तरुण कांडपाल ने बताया कि उनकी दुकान में आपको कई तरह के आकर्षक डिजाइनों में कुमाऊंनी पिछौड़े मिल जाएंगे, पहले के जमाने में इन पिछौड़ों को महिलाएं हाथों से तैयार करती थीं, लेकिन अब मशीनों से कई आकर्षक डिजाइनों में इन पिछोड़ों को तैयार किया जाता है. पहले के समय कॉटन के पिछौड़ों का प्रचलन था, लेकिन अब मॉडर्न लुक के साथ जॉर्जेट के कपड़े के पिछौड़े बाजार में उपलब्ध हैं. उन्होंने बताया कि हर पिछड़े मैं गहरे लाल रंग से धब्बों के सतह ही किनारे में आकर्षक डिजाइन बने होते हैं. यह उत्तराखंड की संस्कृति की पहचान है. आजकल बाजार में सदा सौभाग्यवती, समेत तमाम तरह के श्लोक लिखे हुए पिछौड़े काफी पसंद किए जा रहे हैं. दुकानदार तरुण कांडपाल ने बताया कि उनके पास 15 से ज्यादा डिजाइनों में पिछौड़े उपलब्ध हैं, इन पिछौड़ों की कीमत 700 रूपये से शुरू होकर 3000 रूपये तक है.

तरुण कांडपाल बताते हैं कि बाजार में फैशन के अनुरूप अब स्टॉल में भी पिछौड़ा मिलने लगा है. यह बेहद हल्का और छोटा होता है. इसे महिलाएं काफी पसंद कर रहीं है, वहीं यह उत्तराखंड के पारंपरिक ट्रेडिशनल पहनावे को मॉडर्न लुक दे रहा है. तरुण बताते हैं कि उनके पास 15 से ज्यादा आकर्षक डिजाइनों में पिछौड़ा स्टॉल उपलब्ध हैं, इन स्टॉल्स की कीमत 500 रुपए से शुरू होकर 1500 रुपए तक है. उन्होंने बताया कि पिछौड़ा स्टॉल को भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी महेंद्र सिंह धोनी की पत्नी साक्षी धोनी भी अनंत राधिका अंबानी की शादी में पहन चुकी हैं, जहां यह स्टॉल लोगों के आकर्षण का केंद्र था. कुल मिलाकर, पिछौड़ा कुमाऊंनी महिलाओं के लिए केवल एक परिधान नहीं, बल्कि उनकी परंपरा, संस्कृति और धार्मिक आस्था का प्रतीक है. यह उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को जीवंत बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

क्या है कुमाऊंनी पिछौड़ा?

कुमाऊं में शादी-ब्याह, पूजा-पाठ और अन्य शुभ अवसरों पर महिलाएं विशेष रूप से पिछौड़ा पहनती हैं। यह एक प्रकार की ओढ़नी (दुपट्टा) होती है, जिसे पारंपरिक रूप से हल्के पीले रंग के कपड़े पर लाल रंग से छापा जाता है। इस पर बने डिजाइन केवल सजावट के लिए नहीं होते, बल्कि इनके पीछे धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व छिपा होता है।

पिछौड़ा पर आमतौर पर स्वस्तिक, बेल-बूटे, सूरज, चंद्रमा और अन्य धार्मिक प्रतीक बनाए जाते हैं, जो इसे एक आध्यात्मिक और शुभता का प्रतीक बनाते हैं। पीला रंग पवित्रता और समृद्धि दर्शाता है, जबकि लाल रंग ऊर्जा और शुभता का प्रतीक माना जाता है।

पुराने समय से आज तक पिछौड़ा में आए बदलाव

पहले के समय में पिछौड़ा हाथों से छापा जाता था, जिसे “रंगवाई पिछौड़ा” कहा जाता था। इस प्रक्रिया में प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता था, जिससे कपड़े पर हाथ से बेल-बूटे और शुभ चिन्ह बनाए जाते थे। यह प्रक्रिया काफी मेहनत और समय लेने वाली होती थी, लेकिन इसकी खूबसूरती और विशेषता इसे खास बनाती थी।

समय के साथ फैशन और तकनीक में बदलाव आया और अब पिछौड़ा मशीनों से बनाए जाने लगे हैं। आजकल बाजार में जॉर्जेट, शिफॉन और नेट फैब्रिक में भी पिछौड़ा उपलब्ध है, जो इसे मॉडर्न लुक देता है और पहनने में भी हल्का होता है। इसके अलावा, पहले जहां सिर्फ कॉटन फैब्रिक के पिछौड़े पहने जाते थे, वहीं अब सिल्क और जॉर्जेट के पिछौड़े भी बाजार में मिलते हैं।

बढ़ती लोकप्रियता: मॉडर्न वेडिंग्स में पिछौड़ा फैशन ट्रेंड

अब केवल पारंपरिक कुमाऊंनी शादियों तक ही पिछौड़ा सीमित नहीं रहा, बल्कि यह देशभर में लोकप्रिय हो रहा है। बड़े शहरों में रहने वाली कुमाऊंनी महिलाएं भी इसे अपनी शादियों में पहनना पसंद कर रही हैं, जिससे यह एक मॉडर्न वेडिंग फैशन बन गया है।

हल्द्वानी, नैनीताल, दिल्ली, मुंबई और देहरादून जैसे शहरों में रहने वाले कुमाऊंनी परिवारों की शादियों में पिछौड़ा एक अहम हिस्सा बन गया है। पहले जहां यह केवल पारंपरिक रूप में पहना जाता था, वहीं अब इसे नए स्टाइल में कैरी किया जाने लगा है।

स्टॉल में भी मिल रहा पिछौड़ा

बाजार में फैशन के अनुरूप अब पिछौड़ा स्टॉल भी उपलब्ध हैं। यह छोटे और हल्के होते हैं, जिससे इन्हें कैरी करना आसान हो जाता है। शादी, पूजा या किसी भी पारंपरिक कार्यक्रम में महिलाएं इन्हें दुपट्टे या शॉल के रूप में इस्तेमाल कर सकती हैं।

साक्षी धोनी ने भी पहना था पिछौड़ा स्टॉल

हाल ही में, जब भारत के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की पत्नी साक्षी धोनी ने अनंत अंबानी और राधिका मर्चेंट की शादी में पिछौड़ा स्टॉल पहना, तो यह सभी के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया। इससे न केवल उत्तराखंड के इस पारंपरिक पहनावे को एक नई पहचान मिली, बल्कि यह भी साबित हुआ कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को मॉडर्न अंदाज में भी पहना जा सकता है।

पिछौड़ा: केवल एक परिधान नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर

कुमाऊंनी पिछौड़ा केवल एक दुपट्टा या ओढ़नी नहीं है, बल्कि यह कुमाऊं की सांस्कृतिक विरासत, धार्मिक आस्था और पारंपरिक मूल्यों का प्रतीक है। इसे पहनने वाली महिलाएं इसे सिर्फ एक वस्त्र नहीं, बल्कि अपने संस्कारों, परंपराओं और संस्कृति का सम्मान मानती हैं।

आज जब आधुनिकता के दौर में पारंपरिक पहनावे धीरे-धीरे विलुप्त होते जा रहे हैं, ऐसे में पिछौड़ा का नए डिजाइनों और फैशन ट्रेंड्स में शामिल होना यह दर्शाता है कि हम अपनी संस्कृति को जीवंत बनाए रख सकते हैं।

उत्तराखंड की शादियों में पिछौड़ा पहनने का चलन अब एक नई ऊंचाई पर पहुंच चुका है, और आने वाले समय में यह फैशन इंडस्ट्री में और भी बड़े स्तर पर अपनी जगह बनाएगा।


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