प्रकृति और संस्कृति का संगम है मां नंदा–सुनंदा महोत्सव

by Ganesh_Kandpal

Aug. 27, 2025, 8:14 p.m. [ 143 | 0 | 0 ]
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प्रकृति और संस्कृति का संगम है मां नंदा–सुनंदा महोत्सव

नैनीताल। उत्तराखंड की कुलदेवी मां नंदा–सुनंदा शक्ति, आस्था और प्रकृति का अद्भुत संगम हैं। नंदा महोत्सव जहां हमें प्रकृति के महत्व का बोध कराता है, वहीं पारंपरिक जीवनशैली और पर्यावरण अनुकूल परंपराओं को भी जीवित रखता है।

मां की प्रतिमाएं पूरी तरह प्राकृतिक उत्पादों से बनाई जाती हैं। हरे बांस (Bambusa) की खपच्चियों से मुखमंडल गढ़ा जाता है, कपास (Gossypium arboreum) से उभार दिया जाता है और कदली वृक्ष (Musa paradisiaca) मुख्य स्तंभ के रूप में प्रयुक्त होता है। मां का आसन औषधीय पौधे भृंगराज (Artemisia) से तैयार किया जाता है। बरसात में खिलने वाला डहेलिया (Dahlia) तथा उच्च हिमालय का ब्रह्मकमल (Saussurea obvallata) उनके श्रृंगार और आराधना में विशेष महत्व रखते हैं।

पूजा में ककड़ी (Cucumis), नारियल (Cocos nucifera), अक्षत (Oryza) और दूब (Cynodon) अर्पित करने की परंपरा है। कदली वृक्ष और डोले को स्पर्श करना भी इस अनूठी परंपरा का हिस्सा है।

मां नंदा–सुनंदा का महोत्सव उत्तराखंड की संस्कृति, लोक उत्सव और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व की परंपरा को जीवंत करता है। यह केवल आस्था नहीं, बल्कि पर्यावरणीय चेतना का संदेश भी देता है।

लेखक – ललित तिवारी


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