संस्कृत शिक्षा उपयोगिता के विविध पक्ष हैं जिनकी पूर्ति किसी विकल्प से सम्भव नहीं -प्रो किरण टण्डन

by Ganesh_Kandpal

Aug. 23, 2023, 7:12 a.m. [ 158 | 0 | 0 ]
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डी०एस०बी०परिसर , कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के संस्कृतविभाग के द्वारा दि०२२अगस्त २०२३ को संस्कृतदिवस के उपलक्ष्य में व्याख्यान माला का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य वक्त्री के रूप में संस्कृतविभाग की पूर्व विभागाध्यक्ष, सुप्रसिद्ध लेखिका एवं विदुषी प्रो०किरण टण्डनजी ने अपने वक्तव्य में कहा कि संस्कृत संसार की एक अत्यन्त प्राचीन,समृद्ध, वैज्ञानिक तथा विश्व के विद्वानों द्वारा प्रशंसित भाषा है जिसके अध्ययन एवं परिचय से प्रत्येक भारतीय में आत्मगौरव, स्वाभिमान,महत्वाकांक्षा एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास होता है। यह लाभ‌ देशवासियों को संस्कृत के अतिरिक्त और किसी भाषा से नहीं हो सकता । संस्कृत किसी एक प्रदेश की नहीं अपितु अखिल भारतीय भाषा है अतः इसके अध्ययन से समस्त भारत के प्रति आत्मीयता का भाव पैदा होता है किसी प्रदेशविशेष के प्रति नहीं। अथर्ववेद का भूमिसूक्त, पुराणों के भारतसम्बन्धी वर्णन एवं स्तोत्र तथा प्राचीन एवं अर्वाचीन कवियों की राष्ट्रीय कविताएं -रचनाएं इसका प्रमाण हैं। संस्कृत के ज्ञान से ही समस्त भारतीयों को भारत की संस्कृति-सभ्यता एवं ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र के समस्त मौलिक चिन्तनों, उपलब्धियों तथा वास्तविक इतिहास का यथार्थ ज्ञान होता है।संस्कृत के प्रति उपेक्षाभाव किसी भी प्रबुद्ध भारतीय नागरिक के लिए न तो उचित है और न शोभनीय ही है।अपने प्राचीन साहित्य और अपनी संस्कृति के ज्ञान,रक्षा तथा प्रचार से विमुख रहना किसी भी प्रबुद्ध नागरिक के लिए सर्वथा अनुचित और अशोभनीय होता है। अतः भारत के सभी विशिष्ट एवं प्रबुद्ध नागरिकों का कर्तव्य है कि भारतीय संस्कृति की निधि, संस्कृत भाषा की रक्षा तथा प्रचार में अपने दायित्वों को भी समझें, यथासम्भव उसका पालन करें एवं संस्कृत-संस्कृति की रक्षा करें।
मुख्यातिथि के रूप में डी०एस०बी०परिसर की कलासंकायाध्यक्ष प्रो०इन्दु पाठक जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि संस्कृत भाषा में व्यक्ति,समाज तथा राष्ट्र के चरित्र को उन्नत एवं आदर्श बनाने वाली धार्मिक,नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षाऐं तथा सूक्तियां हैं वे ही समस्त भारत के लिए समान रूप से ग्राह्य,प्रभावोत्पादक एवं श्रद्धेय होती हैं। अतः समस्त भारत में समान उत्तम शिक्षाऐं के‌प्रचार का संस्कृत ही सर्वोत्तम माध्यम है।
कार्यक्रम का संचालन डा०प्रदीप कुमार ,सहायक प्राध्यापक संस्कृत ने किया।‌ धन्यवाद ज्ञापन डा०सुषमा जोशी , सहायक प्राध्यापक संस्कृत ने किया। मंगलाचरण - चित्रेश चिल्वाल, स्नातकोत्तर चतुर्थसत्रार्द्ध के छात्र ने किया।
इस पावन अवसर पर विभागाध्यक्ष संस्कृत -प्रो० जया तिवारी, डा०लज्जा भट्ट, डा०‌नीता आर्या, श्रीमती भावना राणा, बबीता, बिष्ट, प्रीति‌पाल, प्राची पाण्डे, नीरज, चित्रेश चिल्वाल, कपिल काण्डपाल,‌पिंकी जोशी,‌ वंशी, ममता, चांदनी रावत, चम्पा अधिकारी, भावना जोशी, उषा पाण्डे, केशव जोशी, भास्कर‌ काण्डपाल, कैलाश विजल्वाण,भावना काण्डपाल,‌प्रो०कमला पन्त, डा०माया शुक्ला,डा०सुनीता‌ जायसवाल , डा०हेमवती पनेरु, डा०भुवन मठपाल, डा०राजमंगल, डा०सुनीता शर्मा,डा०प्रमीला विश्वास , डा० श्वेता विश्नोई आदि रहे।


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