उत्तराखंड की लोक चित्रकला का महाभारत उत्सव में गौरवमयी प्रदर्शन

by Ganesh_Kandpal

Sept. 4, 2024, 9:54 a.m. [ 352 | 0 | 0 ]
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### उत्तराखंड की लोक चित्रकला का महाभारत उत्सव में गौरवमयी प्रदर्शन

कला और संस्कृति का संगम हमें हमारी धरोहर और परंपराओं से जोड़ता है। वर्ष 2002 में उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र, प्रयागराज (इलाहाबाद) द्वारा आयोजित महाभारत उत्सव इस धरोहर का एक अद्भुत उदाहरण था। इस उत्सव में उत्तराखंड की समृद्ध लोक चित्रकला का प्रतिनिधित्व करते हुए मुझे, लोक कलाकार के रूप में अपनी कला प्रदर्शित करने का अवसर मिला।
इस महाभारत उत्सव में भाग लेने वाले सभी चित्रकारों के लिए यह अनिवार्य था कि वे महाभारत से संबंधित किसी भी प्रसंग का चित्रांकन करें। उत्तराखंड की पारम्परिक ऐपण कला शैली को प्रदर्शित करने का यह एक अनूठा अवसर था। मैंने इस अवसर का लाभ उठाते हुए "जय दत्त वध" का चित्रांकन किया, जो कि महाभारत के एक महत्वपूर्ण प्रसंग पर आधारित था।

यह कला कृति पहली बार कुरुक्षेत्र के पवित्र ब्रह्म सरोवर के समीप प्रदर्शित की गई। विभिन्न राज्यों से आए कलाकारों और दर्शकों ने इस कृति की भरपूर सराहना की। आयोजकों ने भी इसे सराहा, और आज यह कला कृति कुरुक्षेत्र, हरियाणा के संस्कृति विभाग के संग्रहालय में उत्तराखंड का प्रतिनिधित्व करती है। यह मेरे लिए और समूचे उत्तराखंड के लिए एक गर्व का विषय है कि हमारी पारंपरिक कला इतनी दूर तक पहुंची और उसका मान बढ़ा।

हाल ही में, हरेले के शुभ अवसर पर भवाली में आयोजित लोक शिल्प कार्यशाला में पद्म श्री डॉ. यशोधर मठपाल जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। उन्होंने अपने कुरुक्षेत्र प्रवास के दौरान मेरी इस कला कृति को देखा और उसकी अत्यधिक प्रशंसा की। डॉ. मठपाल जी ने कहा कि यह कृति अपने आप में अद्वितीय है और मुझे अपना आशीर्वाद भी दिया।

कला एक ऐसा माध्यम है जो हमारी संस्कृति को जीवंत रखता है और उसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का कार्य करता है। "जय दत्त वध" की इस कृति ने न केवल मेरी कला यात्रा में एक नया आयाम जोड़ा, बल्कि उत्तराखंड की पारंपरिक लोक चित्रकला को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता दिलाई।

इस अनुभव को साझा करते हुए मुझे अपार गर्व का अनुभव हो रहा है और मैं आशा करता हूं कि हमारी धरोहर और परंपराओं को आने वाले समय में और अधिक सुदृढ़ किया जाएगा। आपकी प्रतिक्रिया इस यात्रा को और भी प्रेरणादायक बना सकती है, इसलिए मैं आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा करूंगा।

कला और संस्कृति के इस संगम में भाग लेना मेरे लिए न केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि थी, बल्कि उत्तराखंड की समृद्ध विरासत को बढ़ावा देने का एक महत्वपूर्ण कदम भी था।

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**संक्षेप में:**
- **महोत्सव:** महाभारत उत्सव, 2002
- **स्थान:** कुरुक्षेत्र, हरियाणा
- **कला शैली:** कुमाऊंनी पारंपरिक लोक चित्रकला (ऐपण)
- **कलाकृति:** "जय दत्त वध"
- **संग्रहालय:** संस्कृति विभाग संग्रहालय, कुरुक्षेत्र
- **विशेष आशीर्वाद:** पद्म श्री डॉ. यशोधर मठपाल

इस लेख के माध्यम से मैं कला और संस्कृति के इस गौरवमयी यात्रा को आपके साथ साझा कर रहा हूं, और उम्मीद करता हूं कि यह हमारे लोक कला की महिमा को और अधिक प्रकाश में लाएगा।

वृज मोहन जोशी की कलम से


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