फागोत्सव: बसंत ऋतु का उल्लासमय पर्व, नैनीताल में फागोत्सव का ऐतिहासिक महत्व

by Ganesh_Kandpal

Feb. 9, 2025, 2:15 p.m. [ 354 | 0 | 0 ]
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फागोत्सव: बसंत ऋतु का उल्लासमय पर्व

(आभार: डॉ. ललित तिवारी)

फागोत्सव, जिसे फगुआ भी कहा जाता है, बसंत ऋतु के उल्लास और उत्साह का प्रतीक पर्व है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत, एकता, प्रेम, भाईचारे और रंगों से परिपूर्ण होता है। इस दौरान भगवान विष्णु, शिव, श्री हरि, गणेश, कृष्ण और कुल देवताओं की पूजा की जाती है।

भगवान के साथ होली का उत्सव

बसंत ऋतु के इस उत्सव में भक्त अपने आराध्य के साथ गुलाल और फूलों से होली खेलते हैं। भक्तजन कबीर, मीरा और राधा-कृष्ण के होली गीत गाकर इस पर्व को और अधिक भक्ति भाव से सराबोर कर देते हैं। ब्रज की होली, काली कुमाऊं की होली और बरसाने की होली—सभी में प्रकृति के रंगों और फूलों के माध्यम से उल्लास और आनंद की अनुभूति होती है।

महिलाओं की विशेष भूमिका

आज महिलाएं पहाड़ की समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ा रही हैं। वे न केवल परंपराओं को बचाने में अहम भूमिका निभा रही हैं, बल्कि त्योहारों को जीवन्त बनाए रखने और संस्कृति को संरक्षित करने में भी योगदान दे रही हैं। उनके उत्साह और समर्पण से यह पर्व और भी भव्य रूप लेता जा रहा है।

देश-विदेश से पर्यटकों की भागीदारी

फागोत्सव में होलियारों के साथ-साथ बड़ी संख्या में देश-विदेश से आए पर्यटक भी भाग लेते हैं। यह बसंत पंचमी से होली तक चलने वाला 40 दिनों का भव्य उत्सव होता है, जिसमें फूलों और रंगों से होली खेली जाती है। होली के दिन गाए जाने वाले विशेष गीत को ‘फगुआ’ कहा जाता है, जिसमें होली खेलने, प्रकृति की सुंदरता और राधा-कृष्ण के प्रेम का वर्णन होता है।

नैनीताल में फागोत्सव का ऐतिहासिक महत्व

नैनीताल में 1918 में स्थापित एक प्राचीन धार्मिक एवं सांस्कृतिक संस्था द्वारा होली का आयोजन किया जाता रहा है। वहीं, फागोत्सव का यह 29वां वर्ष है, जिसे पूस के पहले रविवार से प्रारंभ कर भगवान को समर्पित किया जाता है। बसंत पंचमी से श्रृंगार उत्सव आरंभ होता है, शिवरात्रि से भगवान शिव भी इस होली महोत्सव में सम्मिलित होते हैं, और रंगों का उत्सव होलिका दहन तक जारी रहता है।

यह उत्सव लोगों को आनंदित करता है और उनके जीवन में कलाकारों के माध्यम से रंग भरने का कार्य करता है। इसी भावना को व्यक्त करते हुए कहा गया है—

“कौन रंग फागुन रंगे, रंगता कौन वसंत,
प्रेम रंग फागुन रंगे, प्रीत कुसुंभ वसंत।”

“रोम-रोम केसर घुली, चंदन महके अंग,
कब जाने कब धो गया, फागुन सारे रंग।
मन टेसू-टेसू हुआ, तन ये हुआ गुलाल,
अंखियों-अंखियों बो गया, फागुन कई सवाल।”

फागोत्सव सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि प्रेम, उल्लास और आध्यात्मिकता का संगम है, जो हर हृदय में आनंद और भक्ति का संचार करता है।


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