भीमताल में पांच दिवसीय रंगमंचीय कौशल विकास कार्यशाला सम्पन्न शिक्षकों ने दी रंगमंचीय प्रस्तुति

by Ganesh_Kandpal

Feb. 11, 2025, 10:20 p.m. [ 475 | 0 | 0 ]
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भीमताल में पांच दिवसीय रंगमंचीय कौशल विकास कार्यशाला सम्पन्न

शिक्षकों ने रंगमंचीय प्रस्तुतियों से दर्शकों को किया मंत्रमुग्ध

भीमताल, 11 फरवरी 2025 – जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (DIET) भीमताल द्वारा आयोजित पांच दिवसीय रंगमंचीय कौशल विकास कार्यशाला का समापन आज शानदार रंगारंग कार्यक्रमों के साथ हुआ। इस कार्यशाला में शिक्षकों को थिएटर की बारीकियां सिखाने के साथ-साथ कुमाऊंनी लोकसंस्कृति से अवगत कराया गया, ताकि वे अपने विद्यालयों में विद्यार्थियों को अभिनय और रंगमंच के माध्यम से शिक्षा प्रदान कर सकें।

कार्यशाला का उद्घाटन एवं उद्देश्य

यह कार्यशाला प्राचार्य डायट भीमताल सुरेश चंद्र आर्य के नेतृत्व में आयोजित की गई। उद्घाटन सत्र में उन्होंने कहा कि शिक्षकों को पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ कला एवं संस्कृति के माध्यम से भी विद्यार्थियों के समग्र विकास में योगदान देना चाहिए। इस कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य शिक्षकों को रंगमंचीय कला का प्रशिक्षण देना और कुमाऊंनी लोकसंस्कृति के विविध आयामों को समझाना था।

कार्यशाला में वरिष्ठ रंगकर्मी हरीश पांडे, बृजमोहन जोशी, मोहन जोशी, शंभू दत्त साहिल और मनमोहन चौधरी द्वारा शिक्षकों को अभिनय, संवाद अदायगी, शरीर सौष्ठव (बॉडी लैंग्वेज), मंच सज्जा, संगीत और रंगमंचीय कला की तकनीकी दक्षता प्रदान की गई।

कुमाऊंनी लोकगीतों और ऐपण कला का प्रदर्शन

कार्यशाला के दौरान कुमाऊंनी लोकगीतों और लोकचित्र कला (ऐपण) का भी विशेष प्रदर्शन किया गया। प्रतिभागी शिक्षकों ने कुमाऊंनी बाल गीतों का मंचन किया, जिसमें पारंपरिक लोकगीतों को प्रस्तुत किया गया। इनमें –
• फूल संक्रांति पर्व से जुड़ा लोकगीत – फूल देई छम्मा देवी, दैड़ी द्वार भर भकार…
• पूस माह में घाम (धूप) को बुलाने के लिए गाया जाने वाला गीत – घाम दीदी इथकै आ, बादल भीना उथकै जा…
• आंगन में खेलते हुए गाए जाने वाले पारंपरिक गीत – बुढ़िया बुढ़िया के चानै छी और बुढ़िया बुढ़िया त्यर हाथ का छन…

इसके अतिरिक्त, कुमाऊंनी लोकचित्र कला ऐपण का भी मंचन सज्जा के रूप में शानदार प्रदर्शन किया गया।

“अंधेर नगरी चौपट राजा” का प्रभावशाली मंचन

कार्यशाला के अंतिम दिन शिक्षकों ने भारतेन्दु हरिश्चंद्र के प्रसिद्ध नाटक “अंधेर नगरी चौपट राजा” का मंचन किया। इस नाटक के माध्यम से व्यवस्था में व्याप्त अराजकता और न्याय प्रणाली पर कटाक्ष किया गया।
• नाटक का निर्देशन वरिष्ठ रंगकर्मी हरीश पांडे ने किया।
• संगीत निर्देशन मोहन जोशी और शंभू दत्त साहिल द्वारा किया गया।
• प्रतिभागी शिक्षकों ने अपनी संवाद अदायगी और अभिनय कौशल से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

समापन समारोह एवं सम्मान समारोह

समापन समारोह में प्राचार्य डायट भीमताल सुरेश चंद्र आर्य ने कार्यशाला में भाग लेने वाले सभी प्रशिक्षकों और शिक्षकों की सराहना की। उन्होंने कहा –

“शिक्षा के साथ-साथ शिक्षकों को रंगमंचीय कला और सांस्कृतिक गतिविधियों में भी निपुण होना चाहिए, ताकि वे विद्यार्थियों को सृजनात्मक शिक्षा दे सकें। कला के माध्यम से समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाया जा सकता है।”

इसके बाद, वरिष्ठ प्रशिक्षकों – हरीश पांडे, बृजमोहन जोशी, मोहन जोशी, शंभू दत्त साहिल को अंगवस्त्र पहनाकर सम्मानित किया गया। कार्यशाला में भाग लेने वाले सभी शिक्षकों को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया गया।

कार्यशाला में भाग लेने वाले शिक्षक

इस कार्यशाला में भाग लेने वाले शिक्षकों में प्रमुख रूप से – रचना, गुंजन, लक्ष्मी, अनीता आर्या, कमल तिवारी, देवेन्द्र चंद्र कपिल, मीरा रौतेला, नवीन सिंह, लक्ष्मी नवाड़ी, किरण बिष्ट, रेजीना रिक्खी, स्वाति सिंह, सदाफल यादव, प्रदीप, फकीर चंद्र, सुरेंद्र राणा, प्रेमा बेलवाल, मीना रौतेला, खिमेश चंद्र फुलारा, पुष्पम क्वीरा, हिमानी जोशी, सुनीता आर्या, शशि जोशी, मिली गोस्वामी, प्रभा आर्या, गोपाल सिंह बिष्ट, योगेश चंद्र भट्ट, कल्पना जोशी, कुसुम नयाल, नम्रता सिंह, जोगेश सिंह, महेश कांडपाल, हरीश सिंह बिष्ट, नीलम शर्मा आदि शामिल रहे।

कार्यशाला की विशेषताएं एवं निष्कर्ष
1. थिएटर का प्रशिक्षण: शिक्षकों को रंगमंचीय कला की बारीकियां सिखाई गईं।
2. लोकसंस्कृति का प्रचार: कुमाऊंनी लोकगीतों और ऐपण कला का प्रदर्शन किया गया।
3. संवाद अदायगी और शरीर सौष्ठव: अभिनय को प्रभावशाली बनाने के लिए इन पहलुओं पर विशेष कार्य किया गया।
4. भारतेन्दु हरिश्चंद्र के नाटक का मंचन: शिक्षकों ने “अंधेर नगरी चौपट राजा” के माध्यम से न्याय और व्यवस्था पर कटाक्ष किया।
5. सम्मान समारोह: प्रशिक्षकों को सम्मानित किया गया और प्रतिभागी शिक्षकों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए।

निष्कर्ष

इस पांच दिवसीय कार्यशाला ने शिक्षकों को थिएटर और लोकसंस्कृति की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की और उन्हें अपने विद्यालयों में इन विधाओं को आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया। यह आयोजन शिक्षा और कला के समन्वय का एक बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करता है और भविष्य में इस तरह के और कार्यक्रमों की आवश्यकता पर बल देता है।


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