नैनीताल में तीनों तरफ की पहाड़ियों से हो रहा भूस्खलन नैनीताल नगर के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा खतरा।

by Ganesh_Kandpal

July 27, 2022, 12:21 p.m. [ 561 | 0 | 1 ]
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नैनीताल से लीला सिंह बिष्ट की रिपोर्ट

अंग्रेजों ने नैनीताल को संसार के एक साफ- सुथरे, व्यवस्थित, समयानुकूल सभी आवश्यक नागरिक सुविधाओं से परिपूर्ण और स्वास्थ्यवर्धक नगर के रूप में बसाया। संवारा संरक्षित किया। अंग्रेजों ने नैनीताल में एक निश्चित जनसंख्या की रिहायश के अनुसार नागरिक सुविधाएं विकसित की थी। नैनीताल की मालरोड का हिस्सा भू- धसाव के लिहाज से प्रारंभिक काल से ही संवेदनशील रहा है।
1880 के दशक में जब नैनीताल की मौसमी आबादी दस हजार से भी कम थी नैनीताल में एक विनाशकारी भूस्खलन हुआ। 18 सितंबर,1880 का वह दिन नैनीताल के इतिहास में सबसे दर्दनाक दिनों में से एक था, जिसके बारे में लोग आज भी सोचते हैं तो कांप उठते हैं. 1880 में आए उस भूस्खलन ने नैनीताल के लोगों की दुनिया ही बदल दी।
नैनीताल की अल्मा हिल पहाड़ी जिसको सात नंबर कहते हैं से भारी भूस्खलन हुआ जिसमे 43 ब्रिटिश नागरिकों समेत कुल 151 लोगों ने उस हादसे में अपनी जान गवाई थी।तभी से यहाँ की भार - वहन क्षमता के आकलन की बात होने लगी थी।
विश्व प्रसिद्ध पर्यटन नगरी नैनीताल में आज फिर इसी पहाड़ी अल्मा हिल सात नंबर से एक बार फिर बड़ा भूस्खलन हुआ।
सरोवर नगरी में 1 घंटे की बारिश के बाद नगर के सात नंबर क्षेत्र में भारी भूस्खलन हुआ है भूस्खलन के बाद कई मकान खतरे की जद में आ गए हैं l भूस्खलन से स्नोव्यू को जाने वाला मार्ग भी खतरे की जद में आ गया है l
नैनीताल के संवेदनशील क्षेत्र सात नंबर स्नोव्यू में अचानक से शनिवार को भारी भूस्खलन हो गया जिसके बाद क्षेत्र में दहशत का माहौल बना हुआ है। दर्जनभर से अधिक परिवारों को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। मूसलाधार बारिश के चलते सात नंबर क्षेत्र में अचानक से भूस्खलन हो गया। स्नोव्यू को जाने वाली सड़क के नीचे की पहाड़ी में करीब 50 मीटर के दायरे में पहाड़ी दरक गई तो मलबे के साथ कई सारे पेड़ जड़ से उखड़ गए। भूस्खलन के चलते पेड़ जड़ से उखड़ गए हैं। जिस के चलते क्षेत्र में दहशत का माहौल है।
दूसरी तरफ नैनीताल नगर के आधार बलिया नाला के जलागम क्षेत्र में जीआईसी इंटर कॉलेज के नीचे भी भारी भूस्खलन लगातार जारी है और इस दौरान कई घर बलिया नाले में समा चुके हैं।
इस भारी भूस्खलन ने अब राजकीय इंटर कॉलेज तल्लीताल की सीमा को छू दिया है। भूस्खलन से कभी भी ये पूरा क्षेत्र बलिया नाले में समा सकता है।
आपको बताते चलें कि बलिया नाला क्षेत्र में 1972 से लगातार भूस्खलन हो रहा है इसके बावजूद भी सरकार इस क्षेत्र में हो रहे भूस्खलन को रोकने में असफल रही है, जिससे अब नैनीताल के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है क्योंकि बलिया नाला क्षेत्र नैनीताल की बुनियाद माना जाता है।

बलिया नाला के साथ-साथ नैनीताल की अयारपाटा हिल पहाड़ी में डीएसबी कॉलेज के पास भी भूस्खलन हो रहा है जो बहुत तेजी से बढ़ रहा है जिससे डीएसबी कॉलेज के केपी और एसआर महिला छात्रावास को भारी नुकसान हुआ है और इस भूस्खलन से मलवा और भारी बोल्डर आए दिन नैनी झील में समा रहे हैं।
इसके साथ ही शेर का डंडा पहाड़ी में भी इस मूसलाधार बरसात में 18 अक्टूबर 2021 की रात 1 बजे भारी भूस्खलन हुआ जिससे पहाड़ी से भारी बोल्डर और पेड़ मलबे के साथ बहते हुए आए।
नैनीताल झील तीन तरफ से पहाड़ियों से घिरी हुई है, ऊपर मल्लीताल की तरफ नैना पीक पहाड़ी, एक तरफ अयारपाटा पहाड़ी, एक तरफ शेर का डांडा पहाड़ी और नीचे तल्लीताल की तरफ बलियानाला। अब बलिया नाले के साथ-साथ इन दोनों पहाड़ियों में भूस्खलन नैनीताल के लिए भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है भूवैज्ञानिक बताते हैं कि नैनीताल नगर की भार सहने की क्षमता पूरी तरह खत्म हो चुकी है और अगर यहां किसी भी किस्म का निर्माण कार्य पूरी तरह से नहीं रोका गया तो नगर का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
अगर इसी तरह से क्षेत्र में तेजी से भूस्खलन होता रहा तो यह नैनीताल नगर के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा खतरा है।
सेंटर ऑफ एडवांस्ड स्टडी इन जियोलॉजी विभाग कुमाऊं विवि में तैनात यूजीसी शोध वैज्ञानिक प्रो. बहादुर सिंह कोटलिया जलवायु विज्ञान एवं क्लाइमेट चेंज विषय पर विशेष शोध तथा राष्‍ट्रीय भूविज्ञान अवार्ड-2018 हासिल करने वाले देश के एकमात्र वैज्ञानिक जो हिमालयी राज्यों में जलवायु परिवर्तन पर कई शोध कर चुके हैं बताते हैं कि -
जहां तक बलियानाले का सवाल है हमारे भूविज्ञान के हिसाब से ओल्ड बलियानाला आलूखेत के बगल से या कैलाखान के नीचे से शुरू होता है और बीरभट्टी तक जाता है। इनमे जो चट्टानें हैं वो चूने की चट्टानें है इनमें गुफाएं सी बन जाती हैं पानी की वजह से और उनमें पीला रंग निकलने लगता है उसे हम अपनी भाषा में ऑक्सीडेशन रिडक्शन कहते हैं। चार साल पहले बलियानाले में पीला पानी निकल गया था ये उसी का नतीजा है। इसका मतलब जो मैंने स्टडी की है ये हमारी अपनी रिसर्च है कि ओल्ड बलियानाला हर वर्ष 60 सेंटीमीटर से एक मीटर खिसक रहा है। ये अलार्मिंग सिचुएशन है। इसको हम समझ नही पा रहे। बहुत अलार्मिंग सिचुएशन है। जिस दिन ये पूरा का पूरा धंस गया उस दिन ज्योलिकोट का एरिया तो पूरा का पूरा चला ही जायेगा और एक बहुत भयंकर झील बन सकती है टेम्पररी। बहुत जरूरी है कि इसको बचाने के लिए कुछ किया जाए जहाँ पर अंडर कटिंग हो रही है उस पानी को और हरिनगर के पानी को टेप करके सीधा नैनीताल झील में ला सकते हैं। आपको पानी के लिये कोसी नदी, शिप्रा नदी जाने की जरूरत नहीं है। हरिनगर के पानी को टैप करिए जहां से अंडर कटिंग हो रही है ओल्ड बलियानाला लैंड स्लाइड पर वहां से पानी को लिफ्ट कर दीजिए नैनीताल झील में और नैनीताल में पानी ही पानी। बहुत सिंपल तरीका है उसके लिए आपको इंजीनियरिंग की जरूरत पड़ेगी मैं इंजीनियर हूँ नहीं। आपको मशीनरी लानी होगी और बहुत ज्यादा खर्च भी नहीं है।
प्रशासन सबसे पहले मॉल रोड में बैन करे निर्माण। मॉल रोड के किनारे कोई निर्माण न हो। इस पूरे फाल्ट के किनारे कोई निर्माण न हो। सात नंबर में निर्माण को पूरी तरह प्रतिबंधित किया जाये। जहां पर पुराना लैंड् स्लाइड आया था 1880 का उस एरिया में अब निर्माण की कोई उम्मीद ही मत रखिये।
भू वैज्ञानिक सिर्फ यही बता सकते हैं कि फाल्ट सक्रिय है। जरूरत इस बात की है लोकल के लिए भी और सरकार के लिए भी कि नैनीताल में कोई नया निर्माण किया ही ना जाये। इसको पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया जाए। जब तक ऐसा नहीं करेंगे तब तक कुछ होने वाला नहीं है। क्योंकि जो भूगर्भीय हलचल है उसको कोई रोक ही नहीं सकता तो सब लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि किसी भी किस्म के अगले निर्माण को प्रतिबंधित किया जाए।
बलियानाले के भूस्खलन को रोकने का एक ही रास्ता है जैसा उत्तरकाशी में वरुणा व्रत पर्वत के भूस्खलन को रोकने के लिए अपनाया गया है। अन्यथा ये भूस्खलन रुकने वाला नही है।इतिहासकार डॉ अजय रावत कहते हैं कि -
नैनीताल में सबसे बड़ा संकट है भूस्खलन का और यह भूस्खलन आज की बात नहीं है जब से अंग्रेज लोग आए थे उन लोगों ने इस पर बहुत कार्य किया और सबसे पहला रिकॉर्डेड भूस्खलन नैनीताल में 1867 मैं आया था उसके बाद यहां पर हिल्साइड सेफ्टी कमेटी बनी और 1867 के बाद सबसे भयानक भूस्खलन जो हुआ वह हुआ 1880 में और उसमें 151 लोग मारे गए और उसके बाद यहां पर 79 किलोमीटर लंबे नाले बनाए गए और इन नालों का मुख्य उद्देश्य था कि इनसे ड्रेनेज सिस्टम जो था पानी जो था जलागम क्षेत्र का इस पानी को इन नारों से निष्कासित किया जाता था ड्रेनेज किया जाता था। लेकिन आज दुर्भाग्य यह है यह जितने नाले हैं, जिन्हें हम लाइफ लाइन कहते हैं इसके ऊपर भी अवैध निर्माण होते जा रहा है और इस निर्माण का पता प्रशासन को भी मालूम है और जनता भी जानती है और साथ ही साथ जो बिल्डर अवैध कार्य कर रहे हैं वह भी इस बात को जानते हैं लेकिन उनको यह भी मालूम है कि उनके ऊपर कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी। एक प्रमुख कारण जो सबसे खतरनाक है हमारे शहर के लिए वह है अत्यधिक निर्माण कार्य। 2006 में उत्तराखंड सरकार ने एक सम्मेलन किया था, एक कॉन्फ्रेंस की थी उसमें सब लोगों ने संयुक्त रूप से इस बात को स्वीकारा था कि नैनीताल शहर की जो कैरिंग कैपेसिटी है भार सहने की क्षमता वह खत्म हो गई है और अब किसी भी तरह का निर्माण नहीं होना चाहिए पर 2022 आ गया आज भी निर्माण और अवैध निर्माण खुलेआम चल रहा है और सबसे बुरा यह लगता है जिस क्षेत्र को सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार ने और हमारी उत्तराखंड की सरकार ने प्रारंभ में असुरक्षित घोषित घोषित किया था जहां पर निर्माण पूर्ण रूप से प्रतिबंधित था वहां पर बड़े-बड़े होटल बन गए हैं और साथ ही साथ बड़ा निर्माण वहां पर हो रहा है।
प्रोफेसर डॉक्टर गिरीश रंजन तिवारी कहते हैं कि -
बलिया नाला क्षेत्र में पिछले लंबे समय से भूस्खलन चल रहा है वैसे तो पिछले 50 वर्षों से चल रहा है लेकिन पिछले कुछ सालों में है यहां बहुत ज्यादा मुश्किल हो रहा है और उसके उपचार की कोई भी तकनीक कारगर नहीं हो पा रही है बलिया नाला क्षेत्र जो है वह एक तरह से नैनीताल की जड़ है यहां से धीरे-धीरे यह भूस्खलन ऊपर की तरफ को बढ़ रहा है आज यह खतरा ज्यादा बढ़ गया है क्योंकि यह भूस्खलन राजकीय इंटर कॉलेज तक पहुंच गया है संभावना है कि अगर इसके बाद भूस्खलन बढ़ता है तो ऊपर के भवनों को भी भारी खतरा हो सकता है इसके अलावा नैनीताल में इन दिनों दो और जगह पर भारी भूस्खलन हो रहा है एक तो पश्चिम की तरफ शेर का डंडा पहाड़ी में भारी भूस्खलन हो रहा है और इसके सामने ठीक जो अयारपाटा पहाड़ी में उसमें भूस्खलन हुआ है। पिछले लंबे समय से लगातार नैनीताल में अलग-अलग दिशाओं से जो इस तरह भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं या नैनीताल के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकती हैं और यह समय आ गया है कि इसके पति बहुत ज्यादा सतर्क हो जाया जाए और इसके उपचार पर विशेष ध्यान दिया जाए।
नॉर्थ इंडिया होटल एवं रेस्टोरेंट एसोसिएशन एसोसिएशन के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर प्रवीण शर्मा कहते हैं - नैनीताल में जो भूस्खलन हो रहा है खासकर के साथ नंबर, शेर का डंडा और डिग्री कॉलेज की पहाड़ी पर इसका सबसे बड़ा कारण हम सब लोग हैं। हमारी इस समय चिंता यह है कि अगर इसको तुरंत रोका नहीं गया खासकर कंस्ट्रक्शन को वह चाहे लीगल हो या इल्लीगल उसको रोकना बहुत जरूरी है। पूर्ण रूप से बैन किया जाए। हमारा सरकार से भी अनुरोध है कि इसको रोक दिया जाए, नहीं तो यह शहर नहीं बचेगा, यहां का पर्यटन नहीं बचेगा। नैनीताल पर्यटन के लिए जाना जाता है और जिस गति से निर्माण हो रहा है यह शहर के अस्तित्व के लिए बहुत बड़ा खतरा है। आज बलिया नाला पहले से ही धंस रहा है और शहर भी अगर तीन तरफ से धंसा तो इसका अस्तित्व भी ज्यादा दिन नहीं रहेगा। नैनीताल की एक और समस्या है जो बड़ी समस्या है यहां के 70% अवैध गेस्ट हाउस, होमस्टे, होटल इसको भी सरकार को देखना चाहिए और जल्दी से जल्दी कुछ एक्शन लेना चाहिए। अगर नैनीताल का पर्यटन बचाना है तो नैनीताल को बचाना बहुत जरूरी है ।


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