by Ganesh_Kandpal
March 14, 2022, 9:14 a.m.
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लोक पर्व फूलदेई फूलों के बहार के साथ ही नव वर्ष के आगमन का भी प्रतीक है। कई दिनों तक इस त्योहार को मनाने के पीछे मनभावन वसंत के मौसम की शुरुआत भी मानी जाती है। सूर्य उगने से पहले फूल लाने की परंपरा है। इसके पीछे वैज्ञानिक दृष्टिकोण है, क्योंकि सूर्य निकलने पर भंवरे फूलों पर मंडराने लगते हैं, जिसके बाद परागण एक फूल से दूसरे फूल में पहुंच जाते हैं और बीज बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।फूलदेई का त्योहार खुशी मनाने के साथ ही प्राकृतिक संतुलन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाता है। साथ ही वसंत के इस मौसम में हर तरफ फूल खिले होते हैं, फूलों से ही नए जीवन का सृजन होता है। चारों तरफ फैली इस वासंती बयार को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। है। बालक बालिकाओं का समूह जंगलों से फ्यूली, बुरांश, शिलपाड़ा और अन्य अनेक प्रकार के फूलों को चुन चुन कर गांव भर की देहलीज की पूजा कर फूल चढ़ाते हैं और घर द्वार के सम्पन्न, घर भण्डार की पूर्णता की कामना परक गीत गाते हैं, इसके बदले बालक बालिकाओं को तिल, गुड़, पापड़ी और पैसों का उपहार दिया जाता है। फूलों के प्रति हमारा प्यार और दुलार अत्यधिक है इस देहरी पूजन से तृप्त होते हैं। हमारे ऋषि- महर्षियों ने जीवन को आनन्द पूर्वक जीने के अनेक तरीके समझाने के लिए बहुत विचार पूर्वक पर्वो का निश्चय किया है।
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